चलो फिर से कहानी लिखते है |
इस बार पन्नो पे, ख्वाहिशों का रंग काला ही रहने देते है |
पर यह ख्वाहिशें !
यह ख्वाहिश ही तो थी जिसने पहली कहानी अधूरी छोड़ दी |
फिर से ख्वाहिश ?
चमकीले पहाड़ पे एक छोटा सा अपना जहां ,
नदी के किनारे, एक मुट्ठी आसमान ,
और बस हम |
इतनी सी ही तो थी ख्वाहिश
तब भी |
और अब्ब |
क्यों?
डर गए ?
फिरसे ?
हम्म...
चलो फिर,
एक और कहानी पे वक़्त ज़ाया नहीं करते है |
- अभिषिक्ता
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