Monday, October 31, 2016

कितनी दफा सुबह को मेरी तेरे आँगन में बैठे मैंने शाम किया

महफ़िल में तेरी
हम न रहे जो
गम तो नहीं है
गम तो नहीं है
किस्से हमारे
नज़दीकियों के
कम तो नहीं हैं
कम तो नहीं हैं


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